Delhi News: यह एक दिलचस्प लेकिन काफी संवेदनशील स्थिति है. तीस हजारी कोर्ट, जो दिल्ली में स्थित है, भारतीय न्यायिक प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यहां पर रोजाना कई तरह के केस सुनवाई के लिए आते हैं. जिस स्थिति का आप जिक्र कर रहे हैं, उसमें महिला वकील और उनकी महिला मुवक्किल के बीच संघर्ष का कारण उस गुजारा भत्ता राशि से संबंधित प्रतीत होता है, जो मुवक्किल के पति से अदालत के आदेश के अनुसार मिल रही थी.
गुजारा भत्ता (maintenance) और उसकी राशि एक संवेदनशील मुद्दा है, खासकर परिवारिक मामलों में, अदालतों में अक्सर यह देखा जाता है कि किसी व्यक्ति को भत्ता मिलते वक्त, उसके वकील को भी कुछ फीस मिलनी चाहिए, जो आमतौर पर वकील और मुवक्किल के बीच पहले से तय होती है. हालांकि, मुवक्किल का इस फीस का भुगतान न करने का फैसला कई बार कानूनी लड़ाई को जटिल बना देता है, जैसे कि इस केस में हो रहा है.
Female Lawyer Fighting with her Female Client inside the Tis Hazari Courts. Seems the fight started after the female client may had refused to give the percentage to the female lawyer from the alimony amount she has received from the Husband.pic.twitter.com/IWiK5YcdoV
— NCMIndia Council For Men Affairs (@NCMIndiaa) November 12, 2024
इस स्थिति में यह सवाल उठता है कि क्या मुवक्किल को अपने वकील को फीस देना ज़रूरी है? अधिकांश मामलों में, वकील और मुवक्किल के बीच एक पेशेवर संबंध होता है, और वकील को अपनी सेवा के बदले फीस मिलनी चाहिए. अगर मुवक्किल किसी कारणवश इसका भुगतान करने से मना कर देती है, तो वकील कानूनी कदम उठा सकती है, जैसे कि फीस के भुगतान के लिए कोर्ट में आवेदन करना.
यहां पर कोर्ट में दोनों पक्षों के बीच यह मुद्दा उठ सकता है कि क्या महिला मुवक्किल ने वकील से असहमति जताई और भुगतान से इंकार किया, और क्या वकील के लिए यह उचित था कि वह मुवक्किल के खिलाफ कोर्ट में अपील करें. इस प्रकार के मामले कभी-कभी व्यक्तिगत और पेशेवर संबंधों को भी प्रभावित कर सकते हैं, और यह अदालत के लिए एक चुनौती होती है कि वह न्यायपूर्ण और निष्पक्ष निर्णय दे. इस केस की पूरी जानकारी के बिना यह कहना मुश्किल है कि दोनों पक्षों का क्या व्यवहार था, लेकिन यह वकील-मुवक्किल के बीच के पेशेवर संबंधों के बारीक पहलुओं को उजागर करता है.