सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में “शादी का झांसा देकर रेप करने” के बढ़ते मामलों पर चिंता व्यक्त की है. कोर्ट ने कहा कि यदि कोई रिश्ता शादी में परिणत नहीं होता, तो सिर्फ इस आधार पर पुरुष के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में रेप के आरोप में एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया, जिसमें लंबे समय तक चले रिश्ते के बाद खटास आने के बाद शादी का झांसा देकर रेप करने का आरोप लगाया गया था.
कोर्ट ने इसे एक “चिंताजनक ट्रेंड” करार दिया और कहा कि अगर रिश्ते में अचानक मतभेदों या खटास के बाद शादी का झांसा देकर यौन शोषण का आरोप लगाया जाए, तो यह पूरी तरह से वैध नहीं हो सकता. कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत रिश्तों में अगर खटास आ जाए, तो इसे आपराधिक मामला नहीं माना जा सकता है, खासकर जब दोनों पक्षों के बीच सहमति से संबंध बने हों.
सुप्रीम कोर्ट ने महेश दामू खरे के खिलाफ वनिता एस जाधव द्वारा दर्ज कराई गई. बलात्कार की एफआईआर को रद्द कर दिया है, जो सात साल पुरानी थी. कोर्ट ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि लंबे समय तक सहमति से चले संबंधों में खटास आने पर उसे अपराध का रूप देना चिंताजनक है”. कोर्ट का कहना था कि जब किसी रिश्ते में सालों तक शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं, तो बाद में उसे “शादी का झांसा देकर बलात्कार” का आरोप लगाना सही नहीं है, और इसके लिए तुरंत शिकायत की जानी चाहिए, ना कि कई सालों बाद.
यह मामला तब सामने आया जब महेश दामू खरे, जो कि शादीशुदा हैं, और वनिता एस जाधव, जो विधवा हैं, के बीच 2008 में एक अफेयर शुरू हुआ था. जाधव का कहना था कि खरे ने उनसे शादी का वादा किया था, जिसके बाद उनके बीच शारीरिक संबंध बने. हालांकि, खरे की पत्नी ने जाधव के खिलाफ जबरन वसूली की शिकायत दर्ज कराई थी, और मार्च 2017 में जाधव ने खरे के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और कहा कि जब शारीरिक संबंध सालों तक सहमति से बनाए जाते हैं, तो यह नहीं कहा जा सकता कि यह केवल शादी के वादे पर आधारित थे. कोर्ट ने इसे एक “चिंताजनक ट्रेंड” माना, जहां रिश्तों में अचानक खटास आने पर उस पर अपराध का आरोप लगाया जा रहा है.