Maharani Karnavati: रानी कर्णावती को रानी कर्मावती के नाम से भी जाना जाता है. इनकी कहानी तब से शुरू होती है जब उनके पति और गढ़वाल के राजा महिपत शाह की असमय वीरगति को प्राप्त हुए. महिपत ने साल 1622 में राजा श्याम शाह के अलकनंदा में डूबकर मर जाने के बाद गद्दी संभाली थी. बहादुर और योद्धा माने जाने वाले महिपत ने मुग़लों की सत्ता को चुनौती देने के अलावा तिब्बत जैसी मुश्किल भूमि पर भी तीन बार आक्रमण किया. नौ वर्ष तक राज करने के बाद 1631 में रणभूमि में ही उनकी मौत हो गई. तब उनका बेटा पृथ्वीपत शाह था कुल सात साल का था. ज़ाहिर है, राजकाज संभालने का ज़िम्मा उत्तराखंड रानी कर्णावती के हिस्से आया.
लेकिन, तब किसी भी राज्य में नारी का शासन किए जाने को एक बड़ी कमजोरी के रूप में देखा जाता था. गढ़वाल पर मुग़लों की नजर पड़ी. शाहजहां के आदेश पर मुग़ल सेना ने पहाड़ों की ओर कूच किया. कई जगह ये जिक्र भी मिलता है कि राजमाता कर्णावती के दरबार में मुग़ल राजदूत की बेज्जती हुई थी. इसी का बदला लेने के शाहजहां ने हमले का आदेश दिया.
रानी कर्णावती ने मुगलों को ऐसी चोट दी थी, जिसे वो कभी भूल नहीं पाए थे. हा लेकिन हर जगह छुपाने की जरूर कोशिश की थी. दरअसल, मुगलों ने जैसे ही देखा कि एक नारी के पास सत्ता है, तो उन्होंने गढ़वाल पर हमला करने के सोचने लगे, और मुगल सेनापति नजाबत खान अपने 30 हजार सेना के साथ गढवाल पहुंच गया.
रानी कर्णावती ने मुगल सेना को अपनी सीमा में घसने दिया, मुगलों को लगा कि रानी डर गई, ऐसे में मुगल सेना काभी अंदर तक घुस आएं तो रानी ने दोनो तरफ से रास्ते बंद करवा दिए. अब मुगल सेना न तो अंदर आ सकती थी न तो बाहर, जब उसके सैनिक भूख से मरने लगे तो मुगल शांति की बात करने लगे. तब रानी ने कहा कि वो तभी रास्ता खोलेंगी जब मुगल सैनिक अपनी नाक कटवा लेंगे, जिसके बाद मुगल सैनिकों को अपनी नाक काटनी पड़ गई थी. रानी कर्णावती नाक काटी रानी भी कहा जाता है.