Mirza Ghalib Shayari : इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के
Sagar Dwivedi
June 28, 2024
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महफ़िल
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के, हम रहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के.
शिकवा
ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा कि ये, हथकण्डे हैं चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के.
आशिक़
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो, हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के.
ज़मज़म
रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम, धोए धब्बे जामा-ए-एहराम के.
आँख
दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर, ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के.
ग़ुस्ल-ए-सेह्हत
शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेह्हत की ख़बर, देखिए कब दिन फिरें हम्माम के.
ग़ालिब
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के.
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