Mirza Ghalib: हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद,जो नहीं जानते वफ़ा क्या है! मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर
Sagar Dwivedi
March 19, 2024
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लहू
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल, जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.
इश्क़
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब', कि लगाए न लगे और बुझाए न बने.
दरिया
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.
ख़ुदा
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है, कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं.
ख़ुदा
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता, डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता.
उम्मीद
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफ़ा क्या है.
ज़र्बुल-मसल
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब', कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है.
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